बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 3
मानव वातावरण सम्बन्ध
(Man Environment Relationship)
मानव भूगोल जो मनुष्य एवं पर्यावरण की अन्तर्क्रियाओं तथा उनसे उत्पन्न क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन है, में मानव और प्रकृति के सम्बन्ध को लेकर तीन प्रमुख विचारधारायें पायी जाती हैं। इन विचारधाराओं का विकास सामान्यतः मानव भूगोल के क्रमिक विकास के अनुसार हुआ है। मानव भूगोल के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में प्रकृति को प्रधान माना जाता था और मनुष्य को प्रकृति की उपज समझा जाता था। इस विचारधारा को नियतिवाद या निश्चयवाद या पर्यावरणवाद की संज्ञा दी गयी है। इसके प्रवर्तक मुख्यतः जर्मन भूगोलवेत्ता थे। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने मानवशक्ति तथा उसके क्रियाकलापों में आस्था व्यक्त करते हुए मनुष्य को पर्यावरण को एक शक्तिशाली कारक के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस फ्रांसीसी विचारधारा को सम्भववाद के नाम से जाना जाता है। जहाँ एक ओर नियतिवादी विचारक मनुष्य को प्रकृति का दास मानते हैं वहीं दूसरी ओर सम्भववादी विचारक मनुष्य को प्रकृति का विजेता सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इन दोनों विचारधाराओं को अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हुए कुछ ब्रिटिश तथा अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं ने दोनों के समन्वय पर बल दिया है। वे प्रकृति को मनुष्य का नियंत्रक नहीं मानते है किन्तु उनका मत है कि मानव प्रकृति सम्बन्ध में प्रकृति की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। उन्होंने मानव पारिस्थितिकी को प्रधान मानते हुए मानव- प्रकृति सम्बन्धों को नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया। यह नियतिवाद का परिमार्जित रूप है जिसे नव नियतिवाद की संज्ञा दी गयी है।
नियतिवादी विचारक प्रकृति की प्रबलता पर बल देते हैं तथा मनुष्य को प्राकृतिक दशाओं को परिवर्तित करने वाला मानते हैं तथा मनुष्य को प्रकृति का अनुचर मानते हैं। सम्भववादी भूगोलवेत्ता मानव पुरुषार्थ तथा मानवीय क्रिया में आस्था रखते हैं। तीसरी विचारधारा नवनियतिवाद दोनों के समन्वय पर बल देती है। प्राकृतिक पर्यावरण के विभिन्न तत्वों का मनुष्य के शरीर, स्वास्थ्य क्रियाओं तथा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक दशाओं पर प्रभाव पाया जाता है।
नियतिवाद मानव भूगोल की एक प्रमुख विचारधारा है जो मानव प्रकृति सम्बन्ध की व्याख्या प्रकृति को सर्वशक्तिमान तथा समस्त मानवीय क्रियाओं का नियंत्रक मानकर करती है।
इसमें प्रकृति की प्रबलता पर बल दिया गया है तथा मनुष्य को प्रकृति का अनुगामी या सेवक सिद्ध करने का प्रयास किया गया है।
नियतिवाद विचारधारा के समर्थक प्राकृतिक पर्यावरण को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं जिससे इसे पर्यावरणवाद कहते हैं।
नियतिवाद विचारधारा की जड़ अत्यन्त प्राचीन है।
मानव सभ्यता के विकास के आरम्भिक कालों में मानव का तकनीकी ज्ञान बहुत कम विकसित होने से समस्त मानवीय क्रियाओं पर प्रकृति का नियंत्रण अधिक था।
मनुष्य अपने भोजन, वस्त्र तथा आश्रय हेतु प्रकृति पर ही निर्भर होता था।
वह विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक प्रकोपों-भूकम्प, बाढ़, सूखा आदि से भयाक्रांत रहता था।
प्राचीन भारतीय तथा यूनानी विचारकों ने मानव जीवन तथा मानवीय क्रियाओं पर प्रकृति के प्रभाव को ही दर्शाया है।
प्रसिद्ध यूनानी विचारक अरस्तू ने मानव जीवन पर प्राकृतिक दशाओं के प्रभावों का उल्लेख किया है।
मान्टेस्क्यू ने इसी प्रकार के विचार व्यक्त करते हुए मनुष्य के जीवन पर जलवायु तथा मिट्टी के प्रभावों की व्याख्या की है।
स्ट्रेबो, वारेनियस तथा काण्ट तक परम्परागत रूप से प्रकृति को सर्वशक्तिमान तथा मानव जीवन का नियंत्रक माना जाता था।
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जर्मन भूगोलवेत्ता तथा कार्ल रिटर ने भौतिक पक्ष के साथ ही मनुष्य के अस्तित्व को भी स्वीकार किया।
जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने प्राकृतिक शक्तियों की प्रबलता पर अधिक बल दिया था।
जर्मन दार्शनिक अर्नेस्ट हेकल ने बताया कि मनुष्य सहित सभी जीव अपने पर्यावरण से अनुकूलन करते हैं।
प्राकृतिक पर्यावरण की भिन्नता से ही भिन्न-भिन्न मानव प्रजातियों का विकास हुआ है।
बकल ने मनुष्य को जलवायु, मिट्टी तथा प्राकृतिक दृश्य आदि भौतिक दशाओं ने सर्वाधिक प्रभावित किया है।
विश्व की लगभग आधी जनसंख्या मानसून एशिया के उर्वर मैदानी भागों में निवास करती है।
फ्रांसीसी समाजशास्त्री फ्रेडरिक लिप्ले ने मानव समाज पर प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव की व्याख्या की है।
प्रसिद्ध अमेरिकी भूगोलविद कुमारी ई.सी. सेम्पुल ने नियतिवाद का प्रबल समर्थन किया है
फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने नियतिवाद को विभिन्न आधारों पर कटु आलोचना की थी।
मनुष्य पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण कारक है जो प्राकृतिक पर्यावरण के नियन्त्रण को स्वीकार करने के लिए विवश नहीं है।
समान भौतिक परिस्थितियों वाले अलग-अलग प्रदेशों में मानव, समुदाय का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास प्रायः समान रूप से नहीं होता।
अमेरिकी भूगोलवेत्ता हेटिंगटन ने भौतिक तत्वों में जलवायु को सर्वोपरि माना है।
हेटिगटन ने मानव-जीवन के प्रत्येक पक्ष पर जलवायु की अनिवार्यता पर बल दिया।
वर्तमान विकसित वैज्ञानिक युग में मानव के चतुर्दिक क्रियाकलापों से मानव जीवन पर प्रकृति का नियंत्रण कम हो गया है।
प्राचीन एवं कठोर नियतिवाद की सार्थकता समाप्त हो चुकी है।
मनुष्य प्राकृतिक दशाओं से प्रभावित तो होता है किन्तु वह उसके पूर्ण नियंत्रण में नहीं है।
सम्भववादी विचारकों के अनुसार मनुष्य पर्यावरण का एक शक्तिशाली कारक है जो अपने क्रियाकलापों द्वारा प्राकृतिक भू-दृश्य में परिवर्तन करता है।
मानव अपने क्रियाकलापों द्वारा सांस्कृतिक भू-दृश्यों का निर्माण करता है।
मनुष्य के प्रयत्नों तथा क्रिया-कलाप को प्रधानता प्रदान करने वाली विचार सम्भववाद कहलाती है।
ग्राम, नगर, रेलमार्ग, सड़के, पुल, नहरें, खेत, बागान आदि मनुष्य की कुशलता तथा क्रियाकलापों के ही परिणाम हैं।
सम्भववाद का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी विद्वान लुसियन फैब्रे ने किया था।
फैब्रे ने प्राकृतिक पर्यावरण की अपेक्षा मानवीय प्रयत्नों तथा कार्यों को प्राथमिकता दी।
सम्भववादी विचारधारा के विकास का केन्द्र फ्रांस था।
रैटजेल तथा ब्लांश दोनों ने पार्थिव एकता के सिद्धान्त का समर्थन किया।
रैटजेल की आस्था प्रकृति में थी तथा वे जीवन की प्रत्येक समस्या का हल प्रकृति में ही ढूँढ़ते हैं।
बाइडल ला ब्लांश मनुष्य को प्राथमिकता देते हैं तथा उनके मतानुसार मनुष्य स्वयं समस्या एवं हल दोनों ही है तथा प्रकृति उसकी उपदेशिका मात्र है।
प्रकृति द्वारा प्रस्तुत अनेक संभावनाओं में से वह अपनी क्षमता तथा आवश्यकतानुसार उपयोगी सम्भावना का चयन करता है।
बूंश तथा डिमांजियां ने भी मानवीय क्रिया-कलापों पर बल दिया है।
बूंश मनुष्य तथा उसके कार्यों को ही प्रमुख मानते थे तथा प्रकृति का स्थान उनके लिए गौण था।
डिमांजिया ने मानवीय क्रियाकलापों की महत्ता पर जोर दिया था।
सम्भववाद के समर्थक अमेरिकी भूगोलविदों में ईसा वोमैन का नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
ईसा बोमैन ने बताया कि मनुष्य अपने क्रियाकलापों के चयन के लिए स्वतन्त्र है न कि प्रकृति के नियंत्रण में है।
नवनियतिवाद, पर्यावरणवाद की संशोधित विचारधारा है जो व्यावहारिक जगत के अधिक समीप है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित होने से इसे वैज्ञानिक नियतिवाद भी कहा जाता है।
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